National Symposium on Bappa Rawal
मेवाड़ ही नही, संपूर्ण भारत के इतिहास में बप्पा रावल का महत्वपूर्ण स्थान है। वे आठवी शताब्दी के प्रारंभिक काल मे मेवाड़ राज्य के अधिपति बने। यधपि उनके समकालीन समकालीन कोई ऐतिहासिक स़्त्रोत उपब्लध नही हैं। फिर भी ग्यारहवीं शताब्दी के प्रारंभिक काल से लेकर सोलहवीं सत्रहवीं शताब्दी तक के उनके वशंधरा ेंसे संबंध रखने वाले शिलाालेखों,ताम्रपत्रों, एकलिंग-महामत्य,राजविलास, इत्यादि ग्रथों में उपब्लध होने वाली ऐतिहासिक सामग्री के आधार पर यह प्रकट होता है कि बप्पा रावल ने पाशुपत सम्प्रदाय के सिद्ध योगी हारित राशि के माध्यम से भगवान एकलिंगनाथ का आशीवार्द एवं राष्टसेनी माता के परोक्ष सहयोग से अपनी शक्ति और समद्धि का विस्तार कर चितौड़गढ़ पर अपना अधिकार प्राप्त किया तथा चितौडगढ़ का अपनी गतिविधियों का केन्द्र रखतें हुए भारत पर आक्रमण करने वालों को भारत की धरती से खदेड़ते हुए उतर-पश्चिम में काश्मीर ,कंधार, ईराक, ईरान, तुरान एवं काफिरिस्तान तक अपने साम्रज्य राजस्थान, मालवा, गुजरात, कर्नाटक एवं चैल राज्यों तक विस्तृत था।
बप्पा रावल ने अपने विस्त्त सामाज्य में वैदिक साहित्य में उपयब्ध बह्याण्डीय अनुशासन के अनुरूप ‘पारमे़ष्ठीय राज्य व्यवस्था को अपनाया और परमेश्वर भगवान एकलिंगनाथ को अपने सामाज्य का अधिपति स्वीकार करते हुए अपने आपको भगवान एकलिंगनाथ का दीवान मानते हुए शासन कार्य सम्पन्न किया। उन्हानें अपने साम्राज्य की अर्थव्यवस्था को सुद्ढ स्वरूप प्रदान करते हुए सोने, चांदी एवं ताँबे के सिक्को का प्रलचन किया तथा परमेश्वर स्वरूप भगवान एकलिंगनाथ मंदिर के निर्माण के साथ सनातन भारतीय संस्कृति के घटकों धर्म, वैदिक विज्ञान एवं कला के विकास के लिए महत्वपूर्ण कार्य किये।
ऐसे प्रतापी एवं महान् शासक के प्रदेय के सन्दर्भों से भारत की वर्तमान एवं भविष्य की पीढ़ियों को परिचित कराना अपना पुनीत कृतित्व समझते हुए पेसिफिक विश्वविद्यालय प्रशासन अपनें सामाजिक विज्ञाान एवं मानविकी संकाय स सम्बद्ध इतिहास विभाग के माध्यम से इस संगोष्ठी का आयोजन कर रहा है। यह प्रथम परिचर्चा गोष्ठी है। इस संगोष्ठी के सम्पन्न होने के पश्चात भी वर्षपर्यन्त बप्पारावल के संदर्भ में शोध परक गोष्ठियों का आयोजन पेसिफिक विश्वविद्यालय के तत्वाधवान में किया जाता रहेगा, जिनमें भारत और विश्व स्तर इतिहास एवं पुरातत्व विशेषज्ञों , शोधार्थियों एवं शोध-छात्रों के साथ इतिहास एवं पुरातत्व विज्ञाान में रूचि रखने वाले विद्ववानों एवं छात्र-छात्राओं को आमंत्रित किया जाकर बपारावल के जीवन , व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर महत्वपूर्ण विषय सामग्री का प्रकाशन किया जाएगा। सभी विशेषज्ञों, विद्वानों, शोध छात्रों एवं इतिहास तथा पुरातत्व विषय से संबंधित छात्र-छात्राओं की उपस्थिति एवं सहभागिता इस गोष्ठी में अपेक्षित है।
शोध पत्रों हेतु प्रस्तावित
- बप्पा रावल के काल का भारत
- बप्पा रावल का राजनैतिक कर्तव्य
- भारत की राष्टीय एकता में बप्पा रावल का योगदान
- बप्पा रावल एवं हारित राशि
- बप्पा रावल के प्रदेय की प्रासंगिकता
- लकुलीश संप्रदाय एवं एकलिंगजी
- एकलिंग महात्मय का महत्व एवं ऐतिहासिक उपयोगिता
- गुहिल वंश की परम्परा में बप्पा रावल का स्थान
- बप्पा रावल द्वारा प्रतिष्ठापित राज्य की अवधारणा, उसका रूवरूप एवं महत्व
- बप्पा रावल के इतिहास को जानने के ऐतिहासिक स़्त्रोत, उनकी प्रमाणिकता एवं विश्वसनीयता
- चित्रकूट से चितौड़ नामकरण तक का इतिहास़
शोध पत्र आमत्रण
उपर्युक्त विषयों एवं आपकी विशिष्ट ऐतिहासिक जानकारी से संबंध रखने वाले विषयों पर अपने शोध पत्रों के साथ सभी सुधि विद्वान शोधार्थी एवं इतिहास पुरातत्व में रूचि रखने वाले छा़़़त्र- छा़त्राएं आमंत्रित हैं। प्राथमिक परिचर्चा परक इस संगोष्ठी में अपने शोधपत्र का सारांश एवं पूरे आलेख की साॅॅफ्ट एवं हार्डकाॅपी अंगे्रजी अथवा हिन्दी में निर्धारित तिथियों पर प्रेक्षित करने की अनुकम्पा करें।
कार्यक्रम
उद्घाटन सत्रः दिनांक 9 फरवरी 2015
समय: प्रातः 9.00 से 11 बजें तक
तकनीकी सत्र: दिनांक 9 फरवरी 2015
समय: प्रातः 11.15 से 2.30 बजे अपराह्न तक
समापन सत्र: दिनांक 9 फरवरी 2015
समय: दोपहर 3.00 से 4.15 बजे अपराह्न तक